सिर्फ 100 साल में गायब हो सकते हैं 500 पक्षी, वैज्ञानिकों ने जारी की डरावनी चेतावनी Bird Extinction Crisis

Bird Extinction Crisis: एक ताजा वैज्ञानिक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि आने वाले 100 वर्षों के भीतर 500 से अधिक पक्षी प्रजातियां पूरी तरह विलुप्त हो सकती हैं. इस विलुप्ति संकट की बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आवासों का विनाश और मानव गतिविधियों का दखल है. यह रिपोर्ट नेचर इकोलॉजी एंड एवोल्यूशन में प्रकाशित हुई है, जो वैश्विक पारिस्थितिकी और जैवविविधता से जुड़े अध्ययनों के लिए जानी जाती है.

इंसानी दखल बंद हो जाए, तब भी संकट टला नहीं

यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग की वैज्ञानिक केरी स्टीवर्ट का कहना है कि “अब स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि इंसानी हस्तक्षेप पूरी तरह बंद हो जाए, तब भी करीब 250 पक्षी प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा टल नहीं सकता.” उनके अनुसार, कई पक्षियों को बचाने के लिए अब सिर्फ संरक्षण काफी नहीं है, बल्कि प्रजनन कार्यक्रम, आवास पुनर्निर्माण और विशेष संरक्षण प्रयासों की ज़रूरत है.

कौन से पक्षी हैं सबसे अधिक खतरे में?

इस अध्ययन में सामने आया है कि बड़े आकार वाले पक्षी ज्यादा शिकार और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित होते हैं, जबकि चौड़े पंखों वाले पक्षी अपने आवास खोने की वजह से संकट में हैं.

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यूके की संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियाँ:

  • एटलांटिक पफिन – यूके के तटों पर मिलने वाला प्रसिद्ध समुद्री पक्षी
  • ग्रेट बस्टर्ड – दुनिया का सबसे भारी उड़ने वाला पक्षी
  • बैलेरिक शीयरवॉटर – केवल 5,800 की संख्या शेष
  • प्रवासी पक्षी जो यूके में रुकते हैं:
    सोशिएबल लैपविंग
  • येलो-ब्रेस्टेड बंटिंग
  • यह सभी प्रजातियां विलुप्ति के बेहद करीब पहुंच चुकी हैं.
  • दुनियाभर के संकटग्रस्त दुर्लभ पक्षी

अन्य पक्षी जो इस समय गंभीर संकट में हैं:

हेल्मेटेड हॉर्नबिल – दक्षिण एशिया में मिलने वाला यह पक्षी अपने कठोर सिर के भाग के लिए शिकार किया जाता है

  • बेर-नेक्ड अम्ब्रेला बर्ड – कोस्टा रिका के वर्षावनों में पाया जाता है
  • येलो-बेलिड सनबर्ड-असिटी – मेडागास्कर की एक अत्यंत दुर्लभ प्रजाति
  • इटोम्बवे उल्लू – अफ्रीका के जंगलों में रहने वाला रहस्यमयी उल्लू
  • इम्पीरियल वुडपेकर – मैक्सिको का यह पक्षी अब लगभग विलुप्त माना जा रहा है

क्यों जरूरी है संरक्षण की रणनीति में बदलाव?

वैज्ञानिकों का कहना है कि अब संरक्षण कार्यों को महज शिकार रोकने और आवास बचाने तक सीमित नहीं रखा जा सकता. प्रोफेसर मैनुएला गोंजालेज़-सुआरेज़ बताती हैं, “करीब 250–350 प्रजातियों को अतिरिक्त प्रयासों की आवश्यकता है, जिनमें कैप्टिव ब्रीडिंग और पुनर्स्थापन शामिल हैं.”

उनके अनुसार, यदि हम 100 सबसे अनोखी और संकटग्रस्त प्रजातियों को बचा लें, तो हम पक्षियों की जैवविविधता का 68% हिस्सा संरक्षित कर सकते हैं. यह रणनीति अधिक परिणामदायक और प्रभावी साबित हो सकती है.

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प्राकृतिक आवासों को बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए

रिपोर्ट में सबसे अधिक जोर इस बात पर दिया गया है कि प्राकृतिक आवासों का नाश रोकना सबसे जरूरी कदम है. जंगलों, वनों और वेटलैंड्स का क्षेत्र दिन-ब-दिन घटता जा रहा है, जिससे पक्षियों के रहने और प्रजनन की जगहें खत्म हो रही हैं.

अनजाने खतरे भी बना रहे संकट

पक्षियों को सिर्फ शिकार या पर्यावरण विनाश से ही नहीं, बल्कि कई बार अनजाने में होने वाली मौतें भी प्रभावित कर रही हैं. उदाहरण के तौर पर:

  • बिजली की तारों से टकरा कर मौत
  • शहरी क्षेत्रों में शीशों से टकराना
  • बिल्ली, कुत्ते जैसे पालतू जानवरों द्वारा हमला
  • यह सभी कारण धीरे-धीरे पक्षी आबादी को कम कर रहे हैं, जो एक अदृश्य संकट की तरह है.

ब्रिटेन में पक्षियों की संख्या में गिरावट और इजाफा

हाल में किए गए एक सर्वे में स्टार्लिंग पक्षियों की संख्या 1979 से अब तक 85% घट चुकी है. दूसरी ओर, वुडपिजन की संख्या में 1160% तक की बढ़ोतरी देखी गई है. इसका कारण आवास की उपलब्धता और शिकार की दर में अंतर माना जा रहा है.

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धातु प्रदूषण से भी पक्षी हो रहे बीमार

भारी धातुएं जैसे सीसा (Lead), जिंक और आयरन पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं. ये धातुएं उनके शरीर में जाकर जहरीला प्रभाव डालती हैं, जिससे उन्हें:

  • प्यास लगना
  • पानी उगलना
  • कमजोरी और कंपकंपी
  • अंगों में नुकसान जैसी समस्याएं होती हैं.
  • यह प्रदूषण खासकर शहरी क्षेत्रों और खनन इलाकों में रहने वाले पक्षियों पर ज्यादा असर डालता है.

अब भी समय है – नीति और जन-भागीदारी से हो सकती है रक्षा

इस रिपोर्ट का अंतिम निष्कर्ष स्पष्ट करता है कि यदि हम अभी ठोस कदम उठाएं, तो कई पक्षी प्रजातियों को बचाया जा सकता है. इसके लिए आवश्यक है:

  • नीतिगत फैसलों में जैवविविधता को प्राथमिकता देना
  • स्थानीय समुदायों को संरक्षण कार्यक्रमों में शामिल करना
  • शिक्षा और जागरूकता फैलाना
  • आवास पुनर्निर्माण, प्रजनन केंद्र और बायोस्फेयर संरक्षण पर काम करना

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