Railway Station: भारतीय रेलवे के इतिहास में जहां नए-नए रूट्स बनते जा रहे हैं, वहीं मध्य प्रदेश का एक रेलवे स्टेशन ऐसा भी है जहां पिछले 5 वर्षों से कोई ट्रेन नहीं रुकी है. हम बात कर रहे हैं खंडवा जिले के पास स्थित कोहदाड़ रेलवे स्टेशन की, जो कभी यात्रियों से गुलजार रहता था, लेकिन अब वहां सन्नाटा और खंडहर का दृश्य नजर आता है.
ट्रेनें चलती हैं, लेकिन रुकती नहीं
कोहदाड़ रेलवे स्टेशन अब सिर्फ नाम का स्टेशन बनकर रह गया है. यहां से ट्रेनें गुजरती तो हैं, लेकिन रुकती नहीं. पहले यह स्टेशन कटनी-भुसावल पैसेंजर ट्रेन का स्टॉपेज हुआ करता था.
किसान, छात्र, नौकरीपेशा और सब्जी विक्रेता सभी इस ट्रेन से सफर करते थे. लेकिन अब यह स्टेशन पूरी तरह निष्क्रिय हो गया है.
क्यों नहीं रुकती ट्रेन? जानिए वजह
इसका कारण भी उतना ही गंभीर और प्रभावशाली है. भारतीय रेलवे ने कटनी-भुसावल पैसेंजर ट्रेन को एक्सप्रेस ट्रेन में अपग्रेड कर दिया है, जिससे अब वह कोहदाड़ जैसे छोटे स्टेशनों पर नहीं रुकती.
रेलवे की यह तकनीकी और प्रशासनिक निर्णय, स्थानीय लोगों के जीवन पर सीधा असर डाल रहा है.
रोजगार और जीवन की रफ्तार थम गई
कोहदाड़ स्टेशन ना केवल यात्रा का माध्यम था, बल्कि यह हजारों लोगों की आजीविका से भी जुड़ा हुआ था.
यहां के किसान अपनी फसल बेचने, छात्र अपनी पढ़ाई और युवक नौकरी की तलाश में शहर जाते थे. नेपानगर में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में सब्जी विक्रेता इसी ट्रेन से जाकर व्यापार करते थे और लौट आते थे. अब यह सब बंद हो गया है.
ट्रेन ही थी गांव का एकमात्र सहारा
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह स्टेशन कई दशकों पुराना है. यहां के आसपास की आबादी ने रेलवे को मुश्किल समय में पानी तक मुहैया कराया है.
1960-61 के जल संकट में जब कोयले से चलने वाली ट्रेनें पानी के लिए भटक रही थीं, तब कोहदाड़ स्टेशन ही था जिसने रेलवे को पानी दिया. लेकिन अब यही रेलवे स्टेशन उपेक्षा का शिकार हो गया है.
आर्थिक बोझ और विकल्पों की कमी
अब जब ट्रेनें नहीं रुकतीं, तो ग्रामीणों को शहर जाने के लिए बस, ऑटो या निजी वाहन का सहारा लेना पड़ता है.
इनका किराया काफी अधिक होता है, जिससे गरीब तबके पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है. रोजगार ठप हो गए हैं और छात्रों की पढ़ाई में बाधा आ रही है.
क्या फिर से चालू होगा कोहदाड़ स्टेशन?
फिलहाल, रेलवे की तरफ से कोई स्पष्ट सूचना नहीं है कि इस स्टेशन पर ट्रेनें दोबारा रुकेंगी या नहीं.
लेकिन ग्रामीणों की एक ही मांग है कि कोहदाड़ स्टेशन को फिर से सक्रिय किया जाए ताकि उनकी जिंदगी की रफ्तार फिर से पटरी पर लौट सके.
भारतीय रेलवे से उम्मीदें अभी भी कायम
भारत जैसे देश में जहां रेलवे जीवन रेखा की तरह काम करता है, वहां कोहदाड़ जैसे स्टेशन की उपेक्षा एक सवाल बनकर उभरती है.
जरूरत है कि रेलवे ऐसे छोटे स्टेशनों को भी महत्व दे, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने से जुड़े होते हैं.