RTE कानून की आड़ में बड़ा फर्जीवाडा, बच्चों के मुफ्त एडमिशन को लेकर अपनाया ये रास्ता RTE Admission Scam

RTE Admission Scam: दिल्ली में शिक्षा का अधिकार कानून (RTE) के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा का सपना अब कागजी खेल बनता जा रहा है. हाल ही में सामने आए दो मामलों ने पूरे सिस्टम की पारदर्शिता और वैधता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

बिना कोर्ट के आदेश दादी-ताऊ को मिला अभिभावक दर्जा

मीडिया को दो ऐसे केस मिले हैं, जिनमें बच्चों के असली माता-पिता ने एक शपथपत्र और आधार कार्ड के सहारे बच्चों की दादी और ताऊ को कानूनी अभिभावक बना दिया. इसके जरिए ईडब्ल्यूएस (EWS) श्रेणी के तहत फ्री दाखिला करवाया गया.

इन दस्तावेजों में कहीं एसडीएम, तो कहीं तहसीलदार की मुहर है, लेकिन न कोर्ट ऑर्डर है, न ही बाल कल्याण समिति (CWC) की अनुमति. फिर भी शिक्षा निदेशालय ने इन दस्तावेजों को वैध मानते हुए स्कूलों को सीट आवंटित कर दी.

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बिना नोटरी की मुहर के भी मंजूर हुए दस्तावेज

शपथपत्रों में लिखा गया है कि कानूनी अभिभावक बच्चे की पढ़ाई और पालन-पोषण की जिम्मेदारी उठाएगा. कुछ पर नोटरी की मुहर तक नहीं, फिर भी एसडीएम के हस्ताक्षर के आधार पर उन्हें वैध दस्तावेज मान लिया गया.

कोई गोदनामे की प्रक्रिया नहीं, कोई कोर्ट से सत्यापन नहीं, फिर भी दाखिला मिल गया. ये प्रणाली शिक्षा निदेशालय के नियमों और आरटीई कानून की आत्मा के खिलाफ है.

पहला मामला

एक साढ़े तीन साल की बच्ची को ईडब्ल्यूएस कोटे में नेशनल विक्टर पब्लिक स्कूल में सीट आवंटित की गई. दाखिला आवेदन बच्ची की दादी के नाम से किया गया, जिनकी आय 2.7 लाख रुपए सालाना थी.

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लेकिन 22 अप्रैल 2025 को दस्तावेज सत्यापन में अभिभावक प्रमाण पत्र न मिलने पर निदेशालय ने दाखिला रद्द कर दिया. इसके बाद बच्ची के माता-पिता ने गीता कॉलोनी के पंजीकरण कार्यालय से दादी को गोद देने का शपथपत्र पेश किया.

दूसरा मामला

दूसरे मामले में एक लड़के के पिता ने शपथपत्र के जरिए अपने बड़े भाई (ताऊ) को कानूनी अभिभावक बना दिया. इस दस्तावेज पर एसडीएम की मुहर और हस्ताक्षर मौजूद थे.

अब तक ताऊ ने आय प्रमाण पत्र जमा नहीं किया, फिर भी शिक्षा निदेशालय ने उसे भी नेशनल विक्टर पब्लिक स्कूल में सीट दे दी.

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क्या कहता है कानून?

आरटीई एक्ट, 2009 के मुताबिक ईडब्ल्यूएस कोटे में उन्हीं बच्चों को दाखिला मिल सकता है, जो वास्तव में आर्थिक रूप से कमजोर हों और दस्तावेज कोर्ट या CWC की मंजूरी से सत्यापित हों.

संरक्षक अधिनियम 1890 और किशोर न्याय अधिनियम 2015 के अनुसार, बिना न्यायिक आदेश या CWC की अनुमति कोई संरक्षक वैध नहीं माना जा सकता.

बच्चों का हक या अभिभावकों का फायदा?

शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि यह बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है. ये कानूनी जिम्मेदारी का दिखावा है, जिसमें सिर्फ दाखिला पाने का स्वार्थ है, भावनात्मक या सामाजिक ज़िम्मेदारी नहीं.

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यह प्रक्रिया न केवल RTE बल्कि दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम (DSEAR), 1973 का भी उल्लंघन करती है.

शिक्षा निदेशालय की चुप्पी और खामियां

जब इस पर शिक्षा निदेशक वेदिता रेड्डी से सवाल किया गया, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. इससे शिक्षा विभाग की भूमिका संदेह के घेरे में है.

यदि आधार कार्ड और ऑनलाइन आवेदन पारदर्शिता लाने के लिए था, तो शपथपत्र के loophole को क्यों नहीं रोका गया?

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ये फर्जीवाड़ा कैसे खतरे में डाल रहा है सिस्टम?

नोटरी या SDM स्तर पर मिलने वाले शपथपत्र, सिस्टम की सबसे कमजोर कड़ी बनते जा रहे हैं. जिनका इस्तेमाल कर हजारों फर्जी दाखिले हो सकते हैं.

2023-24 में भी कई ऐसे केस सामने आए थे, जिनमें असली माता-पिता की जगह अभिभावक के नाम से फॉर्म भरे गए थे.

समाधान क्या है? विशेषज्ञों के सुझाव

CWC या कोर्ट से सत्यापित संरक्षक दस्तावेज ही मान्य हों.

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  • एसडीएम शपथपत्र बिना वैध आदेश के खारिज किए जाएं.
  • सभी दाखिलों का पोस्ट-अडिट किया जाए.
  • RTE गाइडलाइंस के सातवें बिंदु में संशोधन हो.
  • बच्चे का आधार नंबर अनिवार्य किया जाए.

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