Arbi Farming: उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में अब किसानों का रुझान पारंपरिक फसलों से हटकर उन विकल्पों की ओर बढ़ रहा है जो कम लागत, कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा देते हैं. ऐसा ही एक उदाहरण है अरबी (घुइयां) की खेती, जो इन दिनों यहां किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है.
कम मेहनत, कम लागत और बेहतर रिटर्न
अरबी की फसल जमीन के नीचे होती है और इसे उगाने में ज्यादा मेहनत नहीं लगती. किसानों के अनुसार, एक बीघा खेत में इसकी बुवाई पर लगभग ₹15,000 की लागत आती है, लेकिन 90 से 120 दिनों में फसल तैयार हो जाती है. प्रति बीघा 4 से 5 क्विंटल उपज होती है और बाजार में अरबी की कीमत ₹40 से ₹80 प्रति किलो तक जाती है, जिससे किसान लाखों की कमाई कर रहे हैं.
बुजुर्ग किसानों के लिए बनी वरदान
बुजुर्ग किसानों के लिए यह खेती बेहद उपयोगी साबित हो रही है. फर्रुखाबाद के किसान रामनाथ बताते हैं कि उम्र के इस पड़ाव में वे ऐसी फसल को प्राथमिकता देते हैं जिसमें रोजाना खेत में न जाना पड़े. अरबी की खेती में न निराई-गुड़ाई की अधिक जरूरत है, न सिंचाई की जटिलता. इससे उम्रदराज किसानों को श्रम की कम आवश्यकता होती है.
मवेशियों से सुरक्षित फसल
अरबी की फसल को छुट्टा जानवरों से नुकसान नहीं होता, क्योंकि यह जमीन के नीचे उगती है और इसके पत्तों का स्वाद मवेशियों को पसंद नहीं आता. यही कारण है कि जहां अन्य फसलें पशुओं की वजह से बर्बाद हो जाती हैं, अरबी की फसल सुरक्षित बची रहती है.
डबल कमाई का मौका
अरबी की फसल कटने के बाद बचे हुए पौधे खेत में इकट्ठा कर जैविक खाद बनाई जाती है. इस खाद को अगली फसल में प्रयोग किया जाता है, जिससे पैदावार में वृद्धि होती है और किसान एक ही फसल से दोहरा लाभ उठा पाते हैं.
सेहत के लिए भी फायदेमंद है अरबी
अरबी (घुइयां) ना केवल आमदनी का जरिया है, बल्कि सेहत के लिहाज से भी बेहद उपयोगी है. इसमें मौजूद प्रोटीन, विटामिन A, C, कैल्शियम, आयरन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर को पोषण मिलता हैं. इसके साथ ही सोडियम और पोटैशियम की मात्रा इसे और अधिक लाभकारी बनाती है. यह पाचन तंत्र को सुधारती है और शरीर को ऊर्जा देती है.
अरबी की खेती कैसे करें?
- उचित जल निकासी वाली भूमि का चयन करें.
- उत्तम गुणवत्ता के बीज का इस्तेमाल करें.
- समय-समय पर सिंचाई और निराई करें.
- 90–120 दिन बाद फसल तैयार होने पर सफाई कर मंडी में बिक्री के लिए भेजें.
किसानों की बदलती सोच और भविष्य की दिशा
फर्रुखाबाद जैसे जिलों में यह बदलाव यह दिखाता है कि किसान अब पारंपरिक कृषि पद्धतियों को छोड़कर वैकल्पिक और लाभकारी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं. अरबी की खेती एक बेहतरीन उदाहरण है, जहां मेहनत कम, जोखिम कम और आमदनी ज्यादा है. आने वाले समय में अगर सरकार भी इस ओर ध्यान दे तो अरबी जैसी फसलें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दे सकती हैं.