High Court divorce: हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई पति या पत्नी विवाह के बाद असाधारण कठिनाइयों या उत्पीड़न का सामना कर रहा हो, तो वह विवाह के एक साल पूरे होने से पहले भी तलाक की अर्जी दाखिल कर सकता है. यह फैसला हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 14 की व्याख्या करते हुए सुनाया गया है, जिसमें सामान्यत: विवाह के एक वर्ष बाद ही तलाक की अनुमति दी जाती है.
परिवार न्यायालय ने की थी याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने पलटा फैसला
यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने अम्बेडकर नगर निवासी एक पति की अपील पर पारित किया. दरअसल, याची दंपति का विवाह 3 सितंबर 2024 को हुआ था. विवाह के कुछ ही समय बाद उनके संबंधों में इतनी खटास आ गई कि दोनों ने आपसी सहमति से तलाक की याचिका अंबेडकर नगर के पारिवारिक न्यायालय में दाखिल की.
परंतु, चूंकि यह याचिका विवाह के एक साल के भीतर दाखिल की गई थी, इसलिए परिवार न्यायालय ने इसे हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 14 का हवाला देते हुए खारिज कर दिया.
वकील की दलील
याची की ओर से पेश हुए अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी कि यद्यपि धारा 13-बी आपसी सहमति से तलाक की अनुमति देती है, धारा 14 यह शर्त लगाती है कि तलाक का मुकदमा केवल एक साल बाद ही दाखिल हो सकता है. लेकिन इसी धारा में एक विशेष प्रावधान (परंतुक) भी है, जिसके अनुसार यदि दंपति किसी असाधारण कठिनाई या उत्पीड़न का शिकार हो रहे हों, तो कोर्ट एक साल की अनिवार्यता को शिथिल (माफ) कर सकता है.
हाईकोर्ट ने माना याचिका का आधार वैध
कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि याची दंपति का मामला असामान्य परिस्थितियों का है और दोनों पक्षों की आपसी सहमति तलाक के पक्ष में है. इसलिए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में एक वर्ष की प्रतीक्षा की आवश्यकता नहीं है. इस फैसले के साथ ही हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया और तलाक की अर्जी पर पुनः विचार करने के आदेश दिए.
इस फैसले का कानूनी महत्व
हाईकोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 14 में लचीलापन है, और यदि दंपति असहनीय स्थितियों का सामना कर रहे हों तो उन्हें प्रारंभिक राहत मिल सकती है. यह उन मामलों में बेहद अहम है, जहां तुरंत हस्तक्षेप की जरूरत होती है, और एक वर्ष तक प्रतीक्षा करना अन्यायपूर्ण साबित हो सकता है.