Widow Village: राजस्थान के बूंदी जिले के बुढ़पुरा गांव की पहचान आज ‘विधवाओं के गांव’ के रूप में हो चुकी है. इसके पीछे का कारण है यहां के खदानों में फैली मौत की धूल, जो मजदूरों के फेफड़ों को धीरे-धीरे खत्म कर देती है.
यह धूल सिलिका नामक खतरनाक कणों से भरपूर होती है, जो सांस के जरिए शरीर में जाकर सिलिकोसिस नामक बीमारी को जन्म देती है. यह बीमारी पहले खांसी, थकान और मुंह से खून के रूप में उभरती है, और समय रहते इलाज न हो तो जानलेवा साबित हो सकती है.
जब पतियों की मौत के बाद महिलाएं बनीं मजदूर
जब परिवार के पुरुष सदस्य इस बीमारी के चलते कम उम्र में दम तोड़ देते हैं, तो उनके पीछे छूट जाती हैं विधवाएं, जिन्हें अब जीविका के लिए उन्हीं खदानों में काम करना पड़ता है.
गांव की सैकड़ों महिलाएं सुबह से शाम तक पत्थर तोड़ने के काम में जुटी रहती हैं. उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि यही काम उनके पति को मार गया, लेकिन जीने के लिए यही एकमात्र रास्ता है.
300-400 रुपये की मजदूरी में यह महिलाएं अपनी और बच्चों की भूख मिटाती हैं, लेकिन इसकी कीमत उन्हें स्वास्थ्य की कुर्बानी देकर चुकानी पड़ती है.
सिलिकोसिस अब महिलाओं को भी बना रही शिकार
गीता देवी (काल्पनिक नाम) की कहानी सिर्फ एक उदाहरण नहीं, बल्कि इस गांव की हर दूसरी महिला की हकीकत है.
गीता के पति की मौत सिलिकोसिस से हुई थी, और अब वो खुद भी उसी बीमारी की चपेट में आ चुकी हैं.
डॉक्टरों के अनुसार, सिलिकोसिस का कोई इलाज नहीं है, यह एक बार लगने के बाद अधिकतम 5 साल तक ही जीवन देती है.
सिर्फ रोकथाम ही इसका उपाय है, लेकिन इन मजदूरों के पास ना तो सुरक्षा साधन हैं, ना ही जानकारी.
उजड़ता बचपन, खत्म होती बचपन की सांसें
यह त्रासदी यहीं खत्म नहीं होती. इन महिलाओं के बच्चे भी कम उम्र में खदानों में झोंक दिए जाते हैं.
खेलने-कूदने की उम्र में पत्थर तोड़ते ये मासूम न सिर्फ बचपन खोते हैं, बल्कि स्वास्थ्य भी गंवा देते हैं.
डॉक्टरों की रिपोर्ट के अनुसार, खदान से आने वाले मरीजों में से 50% से अधिक सिलिकोसिस के मरीज होते हैं.
जब तक इलाज शुरू होता है, तब तक यह बीमारी फेफड़ों को पूरी तरह बर्बाद कर चुकी होती है.
सरकार और समाज की जिम्मेदारी
यह समस्या केवल चिकित्सा की नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक लापरवाही की भी है.
यदि सरकार समय रहते उचित सुरक्षा उपाय, स्वास्थ्य जांच और वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करे, तो हजारों लोगों की जान और भविष्य बच सकता है.
इसके लिए स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संस्थाएं और नागरिक समाज को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है.