Aeroplane Fuel Tank: विमान के टेकऑफ से पहले एयरपोर्ट पर टैंकरों के जरिए विमान में फ्यूल भरने का कार्य अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है. यह प्रक्रिया सही समय पर और सही तरीके से की जाती है ताकि उड़ान के दौरान किसी प्रकार की समस्या न आए. विमान के टैंक की फ्यूल क्षमता उस विमान के आकार और मॉडल पर निर्भर करती है, और यह विमान की उड़ान की लंबाई और यात्री संख्या के हिसाब से भी भिन्न होती है.
विमान के फ्यूल टैंक की क्षमता
दुनिया के सबसे बड़े पैसेंजर विमान एयरबस A380 की फ्यूल टैंक की क्षमता लगभग 323,591 लीटर होती है. यह विमान अपनी विशालता के कारण लंबी दूरी की उड़ान भरने के लिए उपयुक्त होता है. वहीं, बोइंग 747, जो एक लंबी दूरी का विमान है, इसमें लगभग 182,000 लीटर फ्यूल भरता है. इन विमानों में इतनी अधिक फ्यूल क्षमता होती है कि वे लंबी दूरी के अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर उड़ान भर सकते हैं.
छोटे विमानों का फ्यूल टैंक
वहीं, छोटे विमानों में, जैसे प्राइवेट जेट या क्षेत्रीय विमान, फ्यूल की मात्रा काफी कम होती है. इन विमानों में केवल 4000 से 5000 लीटर फ्यूल आता है. ऐसे विमानों की टंकी की छोटी क्षमता उनके छोटे आकार और सीमित उड़ान क्षमता को दर्शाती है.
मिड-साइज विमानों की फ्यूल टैंक क्षमता
मिड-साइज विमानों, जो आमतौर पर 100 से 150 यात्री बैठने की क्षमता रखते हैं, उनकी फ्यूल टंकी की क्षमता 26,000 से 30,000 लीटर के बीच होती है. यह विमानों की उड़ान क्षमता को बढ़ाने के लिए पर्याप्त होता है, और इन विमानों का उपयोग घरेलू या क्षेत्रीय मार्गों पर किया जाता है.
उड़ान में फ्यूल की खपत
एक औसत विमान लगभग 2400 लीटर फ्यूल प्रति घंटे उड़ान में खर्च करता है. इसका मतलब है कि लंबी उड़ान के दौरान विमान को समय-समय पर फ्यूल की आवश्यकता होती है, और यह लगातार पायलट द्वारा मॉनिटर किया जाता है. जैसे ही विमान के फ्यूल की मात्रा कम होती है, पायलट कंट्रोल रूम को अलर्ट भेजता है और आवश्यक कदम उठाए जाते हैं.
आसमान में फ्यूल की कमी होने पर विशेष विमान का इस्तेमाल
अगर किसी विमान में उड़ान के दौरान फ्यूल खत्म हो जाए तो इसके लिए विशेष विमान का इस्तेमाल किया जाता है. यह विमान हवा में ही फ्यूल भेजता है. एक सेंसर नोजल के जरिए फ्यूल को ट्रांसफर किया जाता है, जिससे विमान को सुरक्षित रूप से लैंड करने का समय मिल जाता है.