अब ईंट भट्टों में चलेगी पराली से बनी आग, प्रदूषण के खिलाफ सरकार का बड़ा एक्शन Parali Biomass

Parali Biomass: हर साल सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर की जहरीली हवा पर सवाल उठते हैं और प्रदूषण का एक बड़ा कारण पराली जलाना माना जाता है. इसी को देखते हुए अब वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने एक बड़ा कदम उठाया है. आयोग ने पंजाब और हरियाणा सरकारों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने राज्यों के एनसीआर क्षेत्र के बाहर स्थित जिलों के ईंट भट्टों में पराली से बने ‘बायोमास पेलेट’ का उपयोग अनिवार्य करें.

क्या होता है बायोमास पेलेट और क्यों है ये जरूरी?

बायोमास पेलेट एक तरह का ठोस और पर्यावरण-स्नेही ईंधन है, जिसे लकड़ी, फसल के अवशेष और कृषि कचरे को संपीड़ित कर बनाया जाता है. यह कोयले का स्वच्छ साधन है और इसके उपयोग से न केवल ईंट भट्टों से निकलने वाला प्रदूषण कम होता है, बल्कि पराली जलाने की घटनाओं में भी गिरावट आ सकती है. इससे किसानों को भी कचरे का मूल्य मिल सकेगा.

आदेश में क्या है खास? जानें चरणबद्ध लक्ष्य

CAQM के आदेश के अनुसार, सभी ईंट भट्टों को अपने ईंधन मिश्रण में कम से कम 20% धान की पराली से बने पेलेट शामिल करने होंगे. यह अनुपात भविष्य में बढ़ाया जाएगा:

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  • 1 नवंबर 2026 से 30%
  • 1 नवंबर 2027 से 40%
  • 1 नवंबर 2028 से 50%

यह नियम ‘जिग-जैग फायरिंग’ तकनीक पर चलने वाले ईंट भट्टों पर भी लागू होगा, ताकि व्यापक प्रभाव सुनिश्चित किया जा सके.

NCR के बाहर पहली बार लागू हुआ ऐसा आदेश

अब तक केवल दिल्ली-एनसीआर के भीतर ही ईंट भट्टों में स्वच्छ ईंधन के उपयोग की सिफारिश की जाती थी, लेकिन यह पहली बार है जब NCR से बाहर के जिलों को भी इसमें शामिल किया गया है. यह निर्णय पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है.

3,000 से अधिक भट्टों में होगा असर, कोयले पर निर्भरता घटेगी

आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में 3,000 से अधिक ईंट भट्टे संचालित हो रहे हैं, जिनमें से अधिकांश अब भी कोयले पर निर्भर हैं. यदि इन भट्टों में पराली आधारित बायोमास पेलेट का उपयोग शुरू होता है, तो प्रदूषण स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आएगी.

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किसानों, उद्योगों और पर्यावरण – तीनों को होगा फायदा

CAQM का यह निर्णय केवल प्रदूषण को कम करने का उपाय नहीं है, बल्कि यह पराली जलाने की समस्या का स्थायी और व्यावसायिक समाधान भी है. इससे किसानों को आय, ईंट उद्योगों को सस्ता और स्वच्छ ईंधन, और पर्यावरण को राहत मिल सकती है. यह त्रिस्तरीय लाभ मॉडल आने वाले वर्षों में स्थायी विकास की दिशा में एक अहम उदाहरण बन सकता है.

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