Govt Banks Privatization: भारत सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के 5 प्रमुख बैंकों में अपनी हिस्सेदारी घटाने की दिशा में गंभीर कदम उठाने जा रही है। मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार आज यानी 8 जुलाई को एक उच्चस्तरीय मंत्रिस्तरीय समूह (IMG) की बैठक होने जा रही है। जिसमें लेनदेन सलाहकारों की नियुक्ति को अंतिम रूप दिया जाएगा।
किन बैंकों में हिस्सेदारी घटाने की योजना?
सरकार जिन पांच बैंकों में अपनी 20% तक हिस्सेदारी बेचने की योजना बना रही है, वे हैं:
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र
- इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB)
- यूको बैंक
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया
- पंजाब एंड सिंध बैंक
इन बैंकों में सरकार की वर्तमान हिस्सेदारी बहुत अधिक है और इसे घटाकर पब्लिक शेयरहोल्डिंग को बढ़ाने की योजना है।
सलाहकारों की नियुक्ति पर आज बैठक
वित्तीय सेवा विभाग (DFS) और निवेश व सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) के सचिवों की सह-अध्यक्षता में अंतर-मंत्रालयी समूह (IMG) की यह बैठक हो रही है। बैठक में इन बैंकों में आगामी हिस्सेदारी बिक्री के लिए तकनीकी और कानूनी सलाहकारों की नियुक्ति को मंजूरी मिलने की उम्मीद है।
पूंजी जुटाने और विनियमन का उद्देश्य
सरकार का उद्देश्य क्यूआईपी (Qualified Institutional Placement) और ओएफएस (Offer For Sale) के जरिए इन बैंकों में हिस्सेदारी बेचकर:
- नई पूंजी जुटाना,
- बैंकिंग सेक्टर में प्रतिस्पर्धा बढ़ाना,
- और सेबी के पब्लिक शेयरहोल्डिंग मानदंडों को धीरे-धीरे पूरा करना है।
किस बैंक में कितनी सरकारी हिस्सेदारी?
बीएसई (BSE) पर उपलब्ध मार्च तिमाही के आंकड़ों के अनुसार इन बैंकों में सरकार की बहुत अधिक हिस्सेदारी बनी हुई है:
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया: 89.3%
- इंडियन ओवरसीज बैंक: 94.6%
- यूको बैंक: 91%
- पंजाब एंड सिंध बैंक: 93.9%
यह आंकड़ा SEBI द्वारा तय 25% पब्लिक शेयरहोल्डिंग के मानक से काफी अधिक है। हालांकि सरकारी संस्थानों को अगस्त 2026 तक छूट दी गई है।
यूको बैंक से जुटेंगे 2,500 करोड़ रुपये?
रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार यूको बैंक में 10% हिस्सेदारी बेचकर लगभग ₹2,500 करोड़ जुटाने की योजना बना रही है। यह राशि बैंक की पूंजी आधार को मजबूत करने और नए निवेशकों को आकर्षित करने में मदद करेगी।
क्या होगा निवेशकों पर असर?
इस कदम से खुदरा और संस्थागत निवेशकों के लिए इन बैंकों में निवेश का रास्ता खुल सकता है। साथ ही यह निर्णय बैंकिंग क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ावा देगा और सरकारी दखल कम करने की दिशा में एक और अहम कदम होगा।