सैनी सरकार का मजदूरों को तोहफा, 9 साल बाद बदलेंगी न्यूनतम मजदूरी दरें Haryana Labour Policy

Haryana Labour Policy: हरियाणा सरकार ने राज्य के मजदूरों को आर्थिक राहत देने के लिए न्यूनतम मजदूरी दरों में संशोधन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. यह फैसला लाखों मजदूरों के जीवन स्तर को सुधारने में मददगार साबित हो सकता है. गौरतलब है कि पिछली बार मजदूरी दरों में संशोधन 2015 में किया गया था, जबकि अगला बदलाव 2020 में होना तय था. अब जाकर सरकार ने इस दिशा में गंभीर पहल की है.

9 साल बाद बदलेगी मजदूरी, लाखों को होगा सीधा फायदा

मजदूर वर्ग लंबे समय से बढ़ती महंगाई और स्थिर मजदूरी दरों से जूझ रहा था. सरकार के इस कदम से अब राज्यभर के मजदूरों को सीधा लाभ मिल सकता है. नया संशोधन अगर समय पर लागू हो गया, तो यह मजदूरों के लिए एक बड़ी राहत होगी.

समिति का गठन, प्रमुख अधिकारी बनाए गए शामिल

  • सरकार ने इस बदलाव को व्यवस्थित और पारदर्शी बनाने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया है.
  • संयुक्त श्रम आयुक्त परमजीत सिंह को समिति का अध्यक्ष बनाया गया है.
  • साथ ही, श्रम, वित्त और योजना विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारी समिति का हिस्सा हैं.
  • भारतीय मजदूर संघ (BMS) के जोनल संगठन सचिव पवन कुमार को विषय विशेषज्ञ के रूप में शामिल किया गया है.
    यह समिति मजदूरों की वास्तविक जरूरतों और महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए व्यापक सिफारिशें तैयार करेगी.

उप-समिति भी बनाई गई, कार्य में तेजी लाने पर जोर

मुख्य समिति के साथ ही एक उप-समिति भी बनाई गई है, जिसके अध्यक्ष उप-श्रम आयुक्त विश्वजीत सिंह हुड्डा होंगे. यह उप-समिति मुख्य समिति को तकनीकी और क्षेत्रीय इनपुट प्रदान करेगी, जिससे सिफारिशों में स्थानीय जरूरतों को भी शामिल किया जा सके.

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90 दिनों में आएंगी सिफारिशें

सरकार की ओर से स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि समिति को 90 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करनी होंगी.
यदि यह प्रक्रिया समय पर पूरी हो गई और सरकार ने इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया, तो यह हरियाणा के निर्माण श्रमिकों, फैक्ट्री वर्कर्स, खेतिहर मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के अन्य श्रमिकों के लिए बड़ी आर्थिक राहत बन सकती है.

मजदूरी दर संशोधन क्यों है जरूरी?

  • हरियाणा में महंगाई दर पिछले 9 वर्षों में काफी बढ़ चुकी है, लेकिन न्यूनतम मजदूरी दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ था.
  • इससे मजदूरों की वास्तविक आय में गिरावट आई.
  • बढ़ते जीवन-यापन खर्चों के मुकाबले उनकी मजदूरी पर्याप्त नहीं रह गई थी.
  • यह संशोधन खर्च और कमाई के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में जरूरी कदम है.

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