Loan Defaulter Rights: अगर किसी कारणवश आप लोन की किश्तें समय पर नहीं चुका पा रहे हैं, तो यह जानना जरूरी है कि आपके पास भी कुछ कानूनी अधिकार हैं. बैंक या फाइनेंशियल संस्थान इन अधिकारों की अनदेखी नहीं कर सकते. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इन मामलों में बैंकों और रिकवरी एजेंट्स के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं ताकि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके.
धमकी या बदसलूकी की शिकायत करने का अधिकार
रिकवरी एजेंट यदि दुर्व्यवहार करते हैं या धमकाते हैं, तो लोनधारक उनकी शिकायत कर सकता है. नियमों के अनुसार, कोई भी रिकवरी एजेंट सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक ही संपर्क कर सकता है. अगर इस अवधि से बाहर या गलत तरीके से संपर्क किया जाता है, तो ग्राहक बैंकिंग ओंबड्समैन के पास जाकर शिकायत दर्ज कर सकता है.
संपत्ति जब्त करने से पहले नोटिस देना अनिवार्य
गिरवी रखी संपत्ति को जब्त करने से पहले बैंक को ग्राहक को औपचारिक नोटिस देना होता है. बिना नोटिस के बैंक सीधे संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकते. नोटिस मिलने के बाद ग्राहक को लोन चुकाने का उचित समय भी दिया जाना चाहिए, ताकि वह अपनी स्थिति सुधार सके.
किस्तें नहीं भरीं तो भी पहले मौका मिलेगा
अगर किसी ग्राहक ने लगातार तीन ईएमआई नहीं भरी, तो ही बैंक उसे नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित कर सकता है. इसके पहले बैंक को कम से कम दो बार नोटिस भेजना होता है. इससे लोनधारक को अपनी स्थिति सुधारने का एक और अवसर मिलता है.
नीलामी से पहले मिलनी चाहिए बिक्री की पूरी जानकारी
अगर संपत्ति को नीलाम किया जाना है, तो बैंक को 30 दिन पहले पब्लिक नोटिस जारी करना होता है. इस नोटिस में संपत्ति की पूरी जानकारी, लोकेशन और अनुमानित कीमत की जानकारी देनी होती है. यह पारदर्शिता लोनधारक के अधिकार की रक्षा करती है.
संपत्ति की कीमत पर आपत्ति जताने का अधिकार
अगर किसी लोनधारक को लगता है कि उसकी संपत्ति का मूल्य कम आंका गया है, तो वह इस पर आपत्ति दर्ज करा सकता है. बैंक को नीलामी से पहले उचित मूल्य निर्धारण करना होता है और उसका उल्लेख नोटिस में करना अनिवार्य है.
बची हुई राशि पर भी है लोनधारक का हक
यदि नीलामी के बाद बैंक को बकाया राशि वसूलने के बाद भी अतिरिक्त पैसा मिलता है, तो वह राशि वापस लोनधारक को लौटानी होगी. इसके लिए ग्राहक को केवल बैंक में आवेदन करना होता है. बैंक इस रकम को रोक नहीं सकता.