Motivation Story: अगर हौसले हों बुलंद तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती’ – इस कहावत को शाहपुरा उपखंड के गोविंदपुरा बासड़ी गांव के छात्र विवेक कुमार अटल ने चरितार्थ कर दिखाया है. दोनों हाथों से दिव्यांग होने के बावजूद, विवेक ने राजस्थान बोर्ड की 10वीं परीक्षा में 74.33 प्रतिशत अंक हासिल कर पूरे क्षेत्र में प्रेरणा की मिसाल कायम की है.
जन्म से नहीं थे दोनों हाथ, फिर भी नहीं मानी हार
विवेक का जन्म दोनों हाथों के बिना हुआ था, लेकिन उसने कभी अपनी शारीरिक कमी को कमजोरी नहीं बनने दिया. चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर के विवेक को उनके माता-पिता पवन कुमार पटेल और करली देवी ने हमेशा हौसला दिया. साथ ही, शासकीय विद्यालय गोविंदपुरा बासड़ी के शिक्षकों ने भी लगातार प्रोत्साहित किया, जिससे विवेक ने पैरों की उंगलियों से लिखने का अभ्यास शुरू किया और उसमें माहिर हो गया.
दिव्यांगता को नहीं बनने दिया बाधा, पाया प्रथम श्रेणी में सफलता
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गोविंदपुरा बासड़ी में पढ़ने वाले विवेक ने न सिर्फ परीक्षा दी, बल्कि 74.33 प्रतिशत अंक लेकर प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण भी हुआ. उसकी यह सफलता यह दिखाती है कि लगन, आत्मविश्वास और मेहनत से कोई भी लक्ष्य दूर नहीं होता, चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों.
सुविधाओं के बिना दी परीक्षा, फिर भी शानदार प्रदर्शन
विद्यालय के प्रधानाचार्य मदन लाल ने बताया कि विवेक को दिव्यांग श्रेणी में फॉर्म भरवाया गया था, लेकिन उसे बोर्ड की ओर से अतिरिक्त समय या अलग बैठकर परीक्षा देने की सुविधा नहीं मिली. इसके कारण कई प्रश्नों के उत्तर वह पूरी तरह नहीं लिख सका. यदि सुविधाएं मिलतीं, तो उसके अंक और अधिक हो सकते थे.
खेलों में भी पीछे नहीं विवेक
विवेक न केवल पढ़ाई में आगे है, बल्कि उसकी रुचि खेलों में भी गहरी है. उसे क्रिकेट खेलने का बेहद शौक है और वह गांव के बच्चों के साथ मिलकर क्रिकेट और अन्य खेलों में भी भाग लेता है. यह दिखाता है कि विवेक शारीरिक सीमाओं के बावजूद एक सामान्य और सक्रिय जीवन जी रहा है.
समाज को दे रहा है प्रेरणा का संदेश
विवेक की सफलता सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि समाज के लिए एक संदेश है – कि दिव्यांगता कमजोरी नहीं है, बल्कि हौसले से जीती जा सकती है. उसकी यह कहानी उन तमाम बच्चों और अभिभावकों को प्रेरणा देती है, जो कठिनाइयों के सामने हार मान लेते हैं.