प्लेन के इंजन में क्यों फेंका जाता है मुर्गा ? जाने इसके पीछे की असली सच्चाई Bird Strike Test

Bird Strike Test: अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश के बाद देशभर में हवाई यात्रा को लेकर चर्चा तेज हो गई है. यात्रियों के मन में एक बार फिर हवाई सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे हैं. इसी बीच एक बेहद रोचक और चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है – हवाई जहाज की सुरक्षा जांच में ‘मुर्गा’ क्यों फेंका जाता है?

जी हां, आप सही पढ़ रहे हैं. इस प्रक्रिया को कहा जाता है – ‘चिकन गन टेस्ट’, और इसका उद्देश्य है यह जांचना कि प्लेन का इंजन और अन्य भाग पक्षियों की टक्कर से कितना सुरक्षित है.

पक्षी टकराव से बचाने के लिए होता है चिकन गन टेस्ट

कैप्टन सैम थॉमस, जो कि एयरलाइन पायलट एसोसिएशन ऑफ इंडिया से जुड़े एक सीनियर कमांडर हैं, बताते हैं कि हवाई जहाज के इंजन या विंडशील्ड में पक्षियों के टकराने की घटनाएं आम हैं. प्लेन जब तेज रफ्तार (350 किमी/घंटा से अधिक) से उड़ता है, तो बर्ड हिट की घटनाएं गंभीर दुर्घटना का कारण बन सकती हैं.

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कई बार पक्षियों के टकराने से विंडशील्ड टूट जाती है, इंजन में आग लग जाती है या ब्लेड क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. इससे इंजन बंद हो सकता है और प्लेन क्रैश तक की नौबत आ सकती है.

क्या होता है चिकन गन टेस्ट?

यह एक विमान सुरक्षा परीक्षण है, जिसमें एक असली मुर्गे को एक विशेष हवा की तोप (Compressed Air Cannon) से तेज रफ्तार से प्लेन के इंजन, विंग या विंडशील्ड पर दागा जाता है.

इस टेस्ट का उद्देश्य यह पता लगाना होता है कि पक्षी के टकराने पर विमान की बनावट कितना झेल सकती है. अगर इंजन ज्यादा क्षतिग्रस्त नहीं होता, तो उसे उड़ने योग्य माना जाता है. अगर नुकसान ज्यादा होता है, तो संरचनात्मक बदलाव किए जाते हैं.

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असली मुर्गा क्यों इस्तेमाल किया जाता है?

इस परीक्षण में असली मुर्गे का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि उसके पंख, मांस और टिशू की बनावट असली पक्षियों के जैसे होती है. इससे यह सही अनुमान लगाया जा सकता है कि असल टकराव में विमान को कैसा नुकसान हो सकता है.

इसके जरिए यह भी जांचा जाता है कि इंजन के भीतर तक कितनी गहराई तक पक्षी का शरीर घुस सकता है, जिससे इंजन के फेल होने का खतरा हो सकता है.

चिकन गन टेस्ट में इस्तेमाल होती है यह मशीन

इस परीक्षण में उपयोग की जाने वाली मशीन को ही चिकन गन कहा जाता है. यह एक बड़ी और शक्तिशाली हवा से चलने वाली तोप होती है, जो मुर्गे को उसी गति से दागती है, जितनी रफ्तार से कोई पक्षी विमान से टकराता है.

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इस प्रक्रिया में अत्यधिक बल और स्पीड होती है, ताकि वास्तविक टक्कर की सटीक नकल की जा सके.

एक बार की जांच से तय होती है कई इंजनों की गुणवत्ता

कैप्टन थॉमस बताते हैं कि किसी नई इंजन डिजाइन का पहली बार टेस्ट चिकन गन से ही किया जाता है. यदि वहीं सामग्री (Same Material) अन्य इंजनों में भी उपयोग हो रही होती है, तो बार-बार टेस्ट की जरूरत नहीं होती.

अब कई मामलों में स्टैंडर्ड मटेरियल के उपयोग के कारण बार-बार चिकन गन टेस्ट नहीं किया जाता, क्योंकि गुणवत्ता पहले ही प्रमाणित हो जाती है.

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क्या ये टेस्ट अब भी किया जाता है?

हाल के वर्षों में विमानन तकनीक में सुधार के चलते कई कंपनियां अब समान्यीकृत सामग्री (Standardized Material) का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे बार-बार इस टेस्ट की आवश्यकता नहीं होती. लेकिन नई डिजाइनों या खास परिस्थितियों में आज भी यह टेस्ट जरूरी माना जाता है.

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